लॉकडाउन के बहाने रेलवे में शुरू हो गया ट्रांसफर/पोस्टिंग आदेशों के मॉडिफिकेशन का खेल

लंबे समय से एक ही स्थान पर टिके कुछ भ्रष्ट रेलकर्मियों और अधिकारियों ने पीरियोडिकल ट्रांसफर से बचने के लिए चली कुटिल चाल

भारत सरकार ने लॉकडाउन-2.0 को 3 मई 2020 तक बढ़ा दिया है, जिसके अनुपालन में रेल मंत्रालय द्वारा समस्त यात्री ट्रेनों का संचालन भी 3 मई तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। लेकिन इस बहाने से अब रेलकर्मियों के आवधिक ट्रांसफर/पोस्टिंग को रद्द अथवा मॉडिफाई करके अपने चहेतों को उपकृत करने का एक और बहाना रेलवे के अधिकारियों को मिल गया है।

हालांकि सामाजिक दूरी के अनुपालन हेतु कार्यालयों में केवल आवश्यक सेवाओं से जुड़े रेल कर्मचारी ही ड्यूटी पर बुलाए जा रहे हैं, मगर फील्ड में स्थिति इसके ठीक विपरीत है। इसके अलावा इस लॉकडाउन के बहाने कुछ रेलकर्मियों को उपकृत करने का खेल भी शुरू हो गया है। इसी क्रम में प्रयागराज मंडल के कार्मिक विभाग ने बुधवार,15 अप्रैल को एक स्थानांतरण आदेश (पत्र सं. 757-ई/ईसी-5/ट्रांसफर/2000) जारी करके न सिर्फ रेल मंत्रालय के आदेशों-निर्देशों की अवहेलना की है, बल्कि प्रधानमंत्री के “घर में रहें, सुरक्षित रहें” की मुहिम को भी तार-तार कर दिया है।

प्रयागराज मंडल मुख्यालय से जारी उक्त आदेश में भी झोल ही झोल हैं। क्रम संख्या-1 और क्रम संख्या-2 का पहले स्थानांतरण कहीं और किया गया था। परंतु मॉडिफिकेशन के नाम पर पुराने आदेश को बदलते हुए नया आदेश जारी किया गया तथा दोनों कर्मियों को जहां का तहां पदस्थ कर दिया गया। अर्थात गलती पर गलती दोहराई गई है।

क्रम सं.1, सीएमआई/कानपुर जी. एन. मीणा का ट्रांसफर एडमिनिस्ट्रेटिव/पीरियोडिकल पालिसी के तहत 22.11.2019 को कानपुर से इटावा के लिए किया गया था। पिछले पांच महीनों के दौरान उन्हें इटावा के लिए रिलीव नहीं किया गया। परंतु लॉकडाउन के बहाने उनके व्यक्तिगत निवेदन पर अब उनका यह पीरियोडिकल ट्रांसफर रद्द करके उन्हें कानपुर में ही पुनः पदस्थ कर दिया गया है।

क्रम सं.2, टीई/अलीगढ़ जंक्शन मोहम्मद यासीन का पीरियोडिकल ट्रांसफर एक साल पहले 17.05.2019 को उनके व्यक्तिगत निवेदन पर अलीगढ़ से कानपुर के लिए समान पद पर किया गया था। पिछले एक साल के दौरान उन्हें अलीगढ़ जंक्शन से रिलीव क्यों नहीं किया जा सका, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है और न ही इसके लिए किसी को जिम्मेदार ठहराया गया है, परंतु अब उसे भी रद्द करके उन्हें भी अलीगढ़ जंक्शन पर ही पुनः पदस्थ कर दिया गया है।

पहली बात ये कि लॉकडाउन के समय ट्रांसफर/पोस्टिंग का खेल खेला ही नहीं जाना चाहिए। जब कोई कर्मचारी 3 मई तक अपने स्थान से दूसरे स्थान तक जा ही नहीं सकता है, तो फिर उसका मॉडिफिकेशन आदेश इन प्रतिबंधों के बीच निकालने का औचित्य ही नहीं था!

कई कर्मचारियों की ये भी शिकायत है कि ट्रांसफर के नाम पर ड्यूटी स्थल पर जॉइन न करने के कारण उनका वेतन रोक दिया गया है, जबकि इन लोगों का स्थानांतरण रद्द करते हुए लॉकडाउन के बीच नया आदेश जारी कर दिया गया है।

अब रेल अधिकारियों की इस घोर लापरवाही और मनमानी का दंड किस विभाग और स्टाफ को मिलना चाहिए, यह महाप्रबंधक, उत्तर मध्य रेलवे को तय करना है, जिससे उनके जोन में इस प्रकार के गैरजिम्मेदार आचरण से कोरोना के विरुद्ध प्रधानमंत्री की मुहिम को फेल करने वालोें को कड़ा सबक मिल सके।

पीरियोडिकल ट्रांसफर न किए जाने की मांग

उधर यह कहते हुए कि लॉकडाउन पीरियड में रेलकर्मियों का ट्रांसफर न किया जाए, इससे न सिर्फ कोरोना केसेस की रोकथाम में मदद मिलेगी, बल्कि इससे रेलकर्मियों को पोस्टिंग की अपनी नई जगह जाने में भी परेशानी होगी तथा उनका परिवार भी प्रभावित होगा, दि.14 अप्रैल को नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) ने रेलवे बोर्ड को एक पत्र लिखकर कहा है कि वर्ष 2020 में रेलकर्मियों का पीरियोडिकल ट्रांसफर न किया जाए।

पहली बात यह है कि लॉकडाउन पीरियड तक तो किसी रेलकर्मी का ट्रांसफर करने का कोई औचित्य नहीं है। परंतु इसके बाद भी पीरियोडिकल ट्रांसफर न किए जाएं, यह किसी दृष्टिकोण से मानने योग्य बात नहीं है। तथापि यदि रेलवे बोर्ड एनएफआईआर की यह मांग मान लेता है तो इससे न केवल कुछ कामचोर और भ्रष्ट रेलकर्मियों, जो कि 15-20 सालों से एक ही स्थान पर टिके हुए हैं, को अभयदान मिल जाएगा, बल्कि इससे अधिकारियों को भी अपने भ्रष्ट चहेतों को उपकृत करने तथा मनमानी करने का पूरा मौका मिलेगा। संभवतः फेडरेशन से यह मांग इन्हीं कुछ भ्रष्ट रेलकर्मियों और अधिकारियों द्वारा ही कराई गई हो सकती है, क्योंकि दोनों पर आवधिक ट्रांसफर की तलवार लटकी हुई है।