विसंगतियों की अनदेखी – भ्रष्टाचार – निजी स्वार्थ सर्वोपरि

अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से गुजर रही है पूरी रेल व्यवस्था

पिछले हफ्ते 2 फरवरी को “कानाफूसी” ने ट्विटर के माध्यम से कानपुर सेंट्रल जैसे बड़े और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन के सबसे प्रमुख तथा वीआईपी प्लेटफार्म नं.१ की जिस दुर्दशा को उजागर किया था, उस पर कानपुर और आसपास सहित प्रयागराज मंडल, उत्तर मध्य रेलवे के सैकड़ों रेलकर्मियों ने अपनी बड़ी सकारात्मक और सटीक प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

प्रस्तुत हैं उनमें से कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

एक कर्मचारी ने कहा, “सही पकड़े हैं.. जो जीएम रहते हर हफ्ते निरीक्षण के नाम पर सैलून लेकर टहलने और वसूली करने निकलते रहे हैं, उन्हें यह सब कैसे नजर आएगा! जीएम राजीव चौधरी का सैलून जीएम रहते हुए लगभग प्रति सप्ताह प्रयागराज से ब्रेकजर्नी कानपुर होते हुए दिल्ली जाता था, लेकिन उन्हें यह सब कैसे नजर आएगा, जबकि वह खुद ही सैलून को प्रयागराज से सीधे दिल्ली न ले जाकर घोटाला कर रहे थे!”

एक अन्य कर्मचारी ने कहा, “इंजीनियरिंग विभाग के बड़े-बड़े कॉन्ट्रेक्ट में मोटा-मोटा हिस्सा भी तो उन्हें कमीशन के रूप में मिलता था। इन जैसे उच्च अधिकारियों को निरीक्षण के नाम पर केवल बुकिंग बाबू यूनिफार्म में नहीं थे, स्टाल पर मानक का पालन नहीं किया जा रहा है, इत्यादि छोटे और लगभग औचित्यहीन मामलों पर कड़ी कार्यवाही करना आता है, क्योंकि इनको वहां से पर्याप्त या मन-मुताबिक हिस्सा नहीं मिलता है।”

एक अन्य रेलकर्मी ने कहा, “चौधरी साहब पर “कानाफूसी” ने जो सटीक कटाक्ष किया है और भ्रष्टाचार की परत का जो आईना कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन की दुर्दशा के रूप में दिखाया है, उसकी यहां बड़ी चर्चा हो रही है।”

कानपुर निवासी एडवोकेट हिमांशु त्रिपाठी ने ट्विटर पर टिप्पणी करते हुए लिखा, “उरी बाबा, इतना बड़ा लोचा इस ईमानदार सरकार में दिखा, पीएमओ और रेल मंत्रालय को क्या यह सब दिखाई नहीं देता? अगर भीड़ पहले जैसी होती, तो यहां तो कोई भी बड़ा हादसा पलक झपकते ही हो जाता।”

लखनऊ से एक रेलकर्मी विनय कुमार ने लिखा, “अब इस पर होगा ये कि मामला इंजीनियरिंग विभाग को फारवर्ड हो जाएगा और वो इस पर लीपापोती करते हुए थोड़ा-बहुत सुधार कर देंगे और मामला यहीं पर रफा-दफा हो जाएगा। किसी जिम्मेदार उच्च अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं होगी, और अगर जरूरत पड़ी, तो किसी तृतीय श्रेणी के कर्मचारी को बलि का बकरा बना दिया जाएगा!”

मुंबई से एक रिटायर्ड रेलकर्मी विनोद मल्होत्रा ने लिखा, “यह क्या बकवास है, क्या रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग के किसी काम की कोई गारंटी और मानक नहीं है? सोशल मीडिया पर एक्सपोज होने तक यह दुष्कार्य किसी सक्षम अथॉरिटी को दिखाई क्यों नहीं दिया? इससे साफ पता चलता है कि ये सब गैरजिम्मेदार, लापरवाह और महाभ्रष्ट हो चुके हैं, बेहतर होगा कि रेलवे का भी संपूर्ण निजीकरण कर दिया जाए।”

एक कर्मचारी ने लिखा, “ऐसे अधिकारियों की सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए और उन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए, साथ ही उनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।”

हरियाणा स्वाभिमान मंच के चेयरमैन, एडवोकेट सूरज चंद लिखते हैं – “अधिकारी पैसा खा गए, रिश्वत के दबाव में दब गए, प्लेटफार्म उनके दबाव को नहीं सह सका, रेलवे का दुर्भाग्य और देश का सच यही है। संबंधित स्टेशन अधीक्षक से लेकर डीआरएम तक के खिलाफ भ्रष्टाचार के तहत मुकदमा दर्ज करवाया जाए। चेयरमैन, रेलवे बोर्ड, रेलमंत्री और लोकसभा स्पीकर इन मामलों का तुरंत संज्ञान लें।”

वीरमगाम, गुजरात से एक व्यक्ति ए. के. शर्मा ने लिखा, “यह ठेकेदारों की ठेकेदारी है। ईमानदारी का आलम यह है कि काम की क्वालिटी धरातल पर स्पष्ट दिख भी रही है। ऐसे काम तो अक्सर बिल पास होने के बाद ही दिखते हैं।”

इसी बीच डीआरएम/प्रयागराज मोहित चंद्रा के ट्विटर हैंडल से जवाब आया कि “Your issue has been forwarded to concerned official @cnbCtm @sdenc_ald for necessary action.”

डीआरएम हैंडल से अमूमन यही रटा-रटाया जवाब हर उस यात्री या जनता को दिया जाता है जो रेल सेवा की विसंगतियों को रेल प्रशासन के समक्ष उजागर करते हैं।

तथापि इसके प्रत्युत्तर में कहा गया कि “Mohit ji, this is not mine, but this is a public issue. You replied just as @vinay19760 said. What action they both could take when one is sitting above on the same Platform & another is just next to you? Whereas you are the only competent authority who can take appropriate action!”

इसके बाद सीनियर डीईएन/समन्वय, एस. के. गुप्ता का जवाब आया – “PF floor repairing work is under progress at CNB Station and will be complied at earliest.”

तात्पर्य यह है कि पूरी रेल व्यवस्था अकर्मण्यता और अनिर्णय का शिकार हो चुकी है। कोई देखने-सुनने और कार्रवाई करने वाला नहीं है। सरकार पर अपनी सत्ता बचाए रखने और राज्य दर राज्य फतह करने की धुन सवार है, तथा इस पर यदि कोई टीका-टिप्पणी करे तो उसे ठोक-पीटकर ठिकाने लगाने से भी कोई गुरेज नहीं है।

सरकार के इस रवैए के चलते नौकरशाही एक तरफ खुलकर मनमानी और भ्रष्टाचार पर उतारू है, तो दूसरी तरफ वह इसी आड़ में अपनी व्यक्तिगत रंजिशों के चलते अपने नीचे-ऊपर के विरोधियों सहित लगे हाथ बिरादरी विरोधियों को भी निपटा दे रही है। ऐस में पूरा देश और पूरी व्यवस्था अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण वातावरण से गुजर रही है।