आपदा प्रबंधन में सबसे काबिल रेलवे फिसड्डी कैसे रह गया!

राधास्वामी सत्संग का मॉडल रेलवे क्यों नहीं अपना सकता!

ऐसी आपदा के समय रेलवे में कोई युक्तिसंगत, योजनागत नियोजन किसी भी स्तर पर देखने को नहीं मिल रहा। सब कुछ राम भरोसे छोड़कर रेलमंत्री, सीईओ/रेलवे बोर्ड और जीएम/डीआरएम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मान्यताप्राप्त रेल संगठनों की चुप्पी, अकर्मण्यता और स्वार्थपरता ऐसे में रेलकर्मियों-अधिकारियों के जले पर नमक छिड़क रही है!

जोनल/डिवीजनल रेल अस्पतालों में अफरा-तफरी का माहौल है। कोई किसी की सुनने-देखने वाला नहीं है। डॉक्टरों की अतिव्यस्तता और रेल प्रशासन की अकर्मण्यता के चलते रेलकर्मी और अधिकारी मर रहे हैं, तथापि उनके साथ समन्वय करने, उनकी सुधि लेने और उनके औषधोपचार की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करने में रेल प्रशासन और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) बुरी तरह से फेल साबित हुआ है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अब तक पूरी भारतीय रेल पर 90 हजार से ज्यादा रेलकर्मी-अधिकारी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं।

रेलवे बोर्ड की नाक के नीचे उत्तर रेलवे केंद्रीय चिकित्सालय (#NRCH) में कोई डॉक्टर किसी अधिकारी का सीयूजी फोन तक नहीं उठा रहा है, तब कर्मचारियों का क्या हाल होगा यह सोचने वाली बात है। यदि किसी अधिकारी का बहुत ही व्यक्तिगत संबंध किसी डॉक्टर से है, तो वह फोन उठा ले तो भी बहुत बड़ी बात है।

डॉक्टरों के लिए उनके पूरे कैरियर में शायद यह पहला और अंतिम मौका हो कि उन्हें इतने फोन अटेंड करने पड़ रहे होंगे, जबकि रेल में अधिकांश विभागों के अधिकारियों और यहां तक कि रेलकर्मियों के लिए 24×7 हजारों फोन अटेंड करना उनकी नौकरी पर्यंत बाध्यता है। इसलिए अगर कोई डॉक्टर ज्यादा फोन के नाम पर इस आपातस्थिति में भी किसी का विभागीय (सीयूजी) फोन न उठाए और न ही उसे कॉल बैक करे, तो यह न सिर्फ गलत है, बल्कि अक्षम्य अपराध भी है।

होना तो यह चाहिए था कि ऐसी आपात स्थिति का सामना करने के लिए रेलवे बोर्ड, जोनल और डिवीजनल स्तर पर त्रिस्तरीय आपातकालीन नियंत्रण कक्षों की स्थापना करके कोरोनावायरस से संक्रमित हो रहे हर रेलकर्मी और अधिकारी को त्वरित राहत तथा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जातीं। मगर ऐसा कुछ नहीं किया गया। युक्तिसंगत, योजनागत नियोजन किसी भी स्तर पर देखने को नहीं मिला। सब कुछ राम भरोसे छोड़कर रेलमंत्री, सीईओ/रेलवे बोर्ड और जीएम, डीआरएम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। यही नहीं, मान्यता प्राप्त रेल संगठनों की चुप्पी ऐसे में रेलकर्मियों के जले पर नमक छिड़क रही है। इसका परिणाम सबके सामने है।

रेल विभाग को आपदा प्रबंधन में महारत हासिल है, तथापि यह दिल्ली के राधास्वामी सत्संग संस्था जितनी तत्परता भी नहीं दिखा पाया। इस संस्था ने रिकॉर्ड समय में “राधास्वामी कोविद केयर सेंटर” स्थापित करके कोरोना संक्रमण से पीड़ित लोगों को जो सेवा और सुविधा मुहैया कराई, वह अत्यंत सराहनीय है। इसी तरह की व्यवस्था रेलवे को अपने स्टाफ और ऑफिसर्स के लिए करना चाहिए था। अभी भी देर नहीं हुई है।

परंतु सब कुछ अंधेरे में चल रहा है। कुछ भी संगठित और नियोजित नहीं है। न अधिकारियों को कुछ पता है, न ही कर्मचारियों को कोई जानकारी है कि कोरोना उपचार की किट लेने से लेकर, आरटी-पीसीआर या कोई जांच कराने और ऑक्सीजन लेवल गिरने पर रेल में किससे संपर्क किया जाए, और कौन रेलवे अस्पताल में भर्ती सुनिश्चित करेगा?

अभी NRCH में ये हाल है कि पीड़ित को लेकर उसका कोई अपना आदमी अस्पताल पहुंच गया और अगर रहमोकरम से जगह मिल गई, तो ठीक, वरना तो वह अस्पताल के बाहर ही तड़प-तड़पकर मर जायेगा। NRCH से लेकर पूरे देश में रेलवे के सभी बड़े अस्पतालों में यही कुप्रबंधन, अव्यवस्था और अराजकता पसरी हुई है।

जांच की पर्ची बनवाने और कोई नियोजित सिस्टम नहीं होने के कारण भीड़ में जो जितना जोर लगाएगा वही काउंटर तक पहुंचेगा और तब तक सब संक्रमित भी हो जा रहे हैं। अभी इस बात तक कि किसी को कोई गारंटी नहीं है कि रेलवे के बड़े अफसर को क्रिटिकल स्थिति में भी किसी रेल अस्पताल में बेड मिल ही जाएगा।

अभी तक पता नहीं रेलमंत्री, चेयरमैन/सीईओ/रेलवे और सभी महाप्रबंधक यह आदेश क्यों नहीं निकाल रहे हैं कि जो रेल कर्मचारी जहां हैं, वहीं अपनी सुविधा से सीजीएचएस रेट पर अपनी जांच करवा लें और जहां उन्हें जगह मिले वहां अपनी जान बचाने के लिए यथाशीघ्र भर्ती हो जाएं। जांच के लिए रेल अस्पताल आना, फिर पहले पर्ची बनवाने की लाइन, फिर जांच कराने की लाइन, आदि में लगते-लगते तो वह खत्म ही हो जाएगा। जबकि ऐसा आदेश करने से अस्पताल के कर्मचारियों का बोझ तो कम होगा ही, बल्कि भीड़ भी नहीं होगी। राधास्वामी सत्संग का मॉडल रेलवे क्यों नहीं अपना सकता!

सभी जीएम और डीआरएम, सभी विभाग के तेज-तर्रार अधिकारियों और कर्मचारियों को लेकर राधास्वामी कोविद केयर सेंटर की तर्ज पर रेल में तो और भी बेहतर तरीके से काम कर सकता है, क्योंकि आपदा/दुर्घटना प्रबंधन में रेलवे का कोई सानी नहीं है, लेकिन इसकी वह काबिलियत इस वैश्विक आपदा के समय कहीं नजर नहीं आ रही है।

विभिन्न विभागों के काबिल/सक्षम कर्मचारी और अधिकारी यदि नियंत्रण प्रबंधन (कंट्रोल मैनेजमेंट) संभालेंगे, तो डॉक्टर का काम सिर्फ मरीजों को देखना और उनका उपचार सुनिश्चित करना भर रह जाएगा।

कंट्रोल में कई सेल होंगे, जैसे –

पहला सेल – व्हाट्सएप पर या फोन पर कांटेक्टलेस यानि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करेगा। रजिस्ट्रेशन होते ही ये सभी जीएम और सभी विभाग प्रमुखों के कोविद केयर ग्रुप से जोड़ दिए जाएंगे, जिससे रेल परिवार का हर कोविद पॉजिटिव सदस्य सीधे जीएम और वरिष्ठतम अधिकारियों की नजर में बने रहेंगे और कोई कोताही किसी स्तर पर नहीं हो पायेगी।

दूसरा सेल – पीड़ित कर्मचारी को वापस फोन करके बात करेगा, समस्या को सुनेगा और उसके अनुसार मदद की तैयारी करेगा।

तीसरा सेल – रेलवे हॉस्पिटल में बेड की उपलब्धता, उनकी संख्या का हिसाब रखेगा और उसे यह तय करना होगा कि किसको अविलंब बेड उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

चौथा सेल – बेड की संख्या बढ़ाने के लिए संसाधन तैयार करेगा जिससे कम से कम समय में न्यूनतम 10 ऑक्सीजन वाले बेड प्रतिदिन बढ़ाए जा सकें। यहां स्मरण रहे कि पिछले दिनों उत्तर रेलवे ने बहुत ही कम समय में और कम कीमत पर वेंटीलेटर भी तैयार किए थे। इसलिए रेलवे के लिए प्रतिदिन 10 नए वेंटिलेटर वाले बेड भी तैयार करना कोई मुश्किल काम नहीं है।

पांचवां सेल – रेलवे कॉलोनियों में जाकर दवा पहुंचाएगा और रेल आवासों से क्रिटिकल मरीजों को हॉस्पिटल लाने की व्यवस्था संभालेगा। इसके पास एम्बुलेंस के मूवमेंट और अरेंजमेंट की भी जिम्मेदारी होगी।

यह इसलिए जरूरी है कि अब अधिकांश रेल आवासों में सभी बीमार हैं और एकाध जो बचे भी हैं, वे यदि तीमारदारी छोड़ देंगे, तो मरीज की जान पर बन आएगी, क्योंकि घरों यानि रेल आवासों में अब कोई किसी को देखने वाला नहीं है।

जीएम अगर बाहर से सीजीएचएस रेट पर जांच कराने और भर्ती होने की अनुमति दे दें तो इससे सबको राहत मिलेगी।

छठवां सेल – राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और फार्मा कंपनियों के संपर्क में रहकर दवा आपूर्ति सहित ऑक्सिजन सप्लाई, दूसरे हॉस्पिटल्स में बेड की उपलब्धता के साथ ही किसी की मृत्यु हो जाने पर समय से उसे सभी जरूरी कागजात मिल जाएं और जो अन्य सुविधाएं हों, वह भी उपलब्ध हो जाएं, यह सुनिश्चित करेगा।

सातवां सेल – मृत्युपरांत दी जाने वाली सभी सहायता और व्यवस्था सुनिश्चित करेगा।

आठवां सेल – वह जो पोस्ट_कोविद मरीजों की आवश्यकता पड़ने पर काउंसलिंग कर सके।

अभी भी फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशंस (#FROA) की अकर्मण्यता और स्वार्थपरता की हद है। इसके पदाधिकारीगण इस क्राइसिस में भी सिर्फ अपना जुगाड़ देख रहे हैं, जबकि उपरोक्त सभी इनीशिएटिव्स उसे लेने चाहिए थे। इसके अलावा उसे अन्य संगठनों को साथ लेकर रेलमंत्री और सीईओ पर दवाब भी बनाना चाहिए था। बंगला प्यून (#TADK) पर मंत्री और सीआरबी #CEORlys को आईना दिखाने का भी यह सही समय है, जिससे शायद इस ओवर कांफिडेंट मंत्री और इस अहंकारग्रस्त सरकार की छवि पर थोड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ता और ये सभी तमाम उपाय इस त्रासदी में राहत दे सकने में समर्थ हो सकते थे।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी