जब आपदा सिर पर आई हुई हो, तब कसीदे नहीं पढ़े जाते!

मीडिया ब्रीफिंग में सीईओ/रेलवे ने रेल की वर्तमान स्थिति और भविष्य के बारे में कुछ बताने के बजाय मीडिया कर्मियों को दी रुटीन जानकारी

सुरेश त्रिपाठी

यह सर्वमान्य परंपरा है कि जब कोई बड़ी आफत आई हुई हो, जब कोई बड़ी आपत्ति-विपत्ति छाई हुई हो, तब उससे बचाव का प्रबंधन किया जाता है, तत्काल उसके निवारण के उपाय खोजे जाते हैं, मगर ऐसे कठिन समय में फालतू या रुटीन कार्यों के कसीदे पढ़कर अपनी पीठ नहीं थपथपाई जाती।

परंतु आजकल रेलवे में यही हो रहा है। एक तो इस कुप्रबंधन के चलते रेल का पहले ही बंटाधार हो चुका है। रेल चल नहीं रही है, ढ़कल रही है, घिसट रही है, और अपने स्वर्णिम विगत पर धार-धार रो रही है तथा रेलकर्मी और अधिकारी हताश हैं।

अव्यवस्था का ज्वलंत उदाहरण

इस सबके बावजूद रेल के सर्वोच्च अधिकारी द्वारा रविवार, 25 अप्रैल 2021 को आयोजित पहली मीडिया ब्रीफिंग में जो प्रेजेंटेशन दिया गया, जो बताया गया, वह वर्तमान कोविड आपदा के बारे में न होकर ऑक्सीजन एक्सप्रेस, पैसेंजर ट्रेन सर्विसेस, एडीशनल ट्रेन सर्विसेस, फ्रेट लोडिंग में टर्न अराउंड इत्यादि पर कसीदे पढ़े गए।

जबकि उनके द्वारा इस मीडिया ब्रीफिंग में रेल की वर्तमान स्थिति के साथ ही रेल के भविष्य के बारे में जानने की मीडिया कर्मियों की अपेक्षा थी।

जहां वर्तमान में कोरोना संक्रमित रेलकर्मियों की संख्या लगभग एक लाख से अधिक हो चुकी है और रोजाना करीब 70 रेलकर्मी और अधिकारी कोरोना के चलते अकाल काल कवलित हो रहे हैं।

जहां स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह से चरमरा गई है। बड़े से बड़े अधिकारी को रेल अस्पतालों में एक बेड के लिए अदने से डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। फिर भी नीचे से ऊपर तक कोई उनकी सुनने वाला नहीं है।

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परंतु रेल के सर्वोच्च अधिकारी चेयरमैन/सीईओ ने इस सब पर न तो एक शब्द कहा, और न ही कुछ बताया।

जबकि उन्हें तो सबसे पहले यह बताना चाहिए था कि वर्तमान कोविड आपदा से निपटने और रेलकर्मियों तथा अधिकारियों को संक्रमण से बचाने के लिए उन्होंने क्या इंतजाम किए हैं?

उन्हें बताना चाहिए था कि पिछले 4 महीनों से कोई फ्रूटफुल निर्णय उनके या मंत्री के स्तर पर क्यों नहीं लिया जा सका?

उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग आज चार महीने बाद भी क्यों नहीं हो पाई है?

उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि उनकी तरफ से जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग के प्रस्ताव भेजे गए थे या नहीं?

यदि उनकी तरफ से प्रस्ताव भेजे गए थे, तो कितनी बार? और यह भी कि उन प्रस्तावों पर मंत्री ने क्या निर्णय लिया?

क्या यह माना जाए कि जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग्स के लिए पूर्व रेलमंत्री पवन बंसल की तर्ज पर रेलवे बोर्ड द्वारा ‘बोली’ लगवाई जा रही है? और चूंकि अब तक कोई बोली लगाने आया नहीं है, इसलिए पोस्टिंग में जानबूझकर और देरी की जा रही है?

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि कुछ मीडिया पर्सन् द्वारा उपरोक्त सवालों को लेकर हाल ही में जब इधर-उधर पूछताछ शुरू की गई और सुराग लगाने की कोशिश हुई, तब तत्काल मंत्री सेल में बैठे लोगों सहित रेलवे बोर्ड की पूरी सूचना सेवा सक्रिय हो गई है और उक्त तमाम सुगबुगाहट को जहां का तहां रोकने का प्रयास किया जा रहा है।

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