व्यवस्था ढ़ही नहीं है, उजागर हुई है बुरी तरह!

The System Didn’t Collapse, It Just Got Exposed !

सुरेश त्रिपाठी

चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड और बोर्ड मेंबर्स आज बुधवार, 28 अप्रैल को दोपहर बाद तीन बजे सभी जोनल जीएम्स, डीजी/आरडीएसओ, डीजी/नायर तथा सभी मंडल रेल प्रबंधकों (डीआरएम्स) के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से रेलवे की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करेंगे। इस ऑनलाइन मीटिंग का प्रमुख एजेंडा कोविड महामारी के दूसरे चरण में रेल अस्पतालों की तैयारी और व्यवस्था का मुद्दा है। बाकी सभी अन्य विषय रुटीन हैं।

उपरोक्त सभी वरिष्ठ रेल अधिकारियों को भेजे गए मैसेज में ईडी/ईएंडआर, रेलवे बोर्ड ने इस वर्चुअल बैठक में हालांकि “बोर्ड मेंबर्स” के भी शामिल होने की बात कही है, परंतु एक “मुनीम” अर्थात फाइनेंस मेंबर – जो वर्तमान जीएम से भी काफी जूनियर है – को छोड़कर बाकी अन्य कोई मेंबर नहीं है। ऐसे में “बोर्ड मेंबर्स” का इस बैठक में कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि उनके सभी पद महीनों से रिक्त पड़े हैं।

प्रशासनिक अव्यवस्था का वातावरण

ऐसा लगता है कि जब तक अपेक्षित “बोली” नहीं लगेगी, तब तक शायद बोर्ड मेंबर्स और जीएम्स की पोस्टिंग भी नहीं होने वाली है। चार-पांच जोनल जीएम के पद भी कई महीनों से खाली हैं। जिन जोनों में स्थाई जीएम नहीं हैं, वहां कोरोना महामारी के चलते भीषण प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम है। वहां डीआरएम की कोई सुनने वाला नहीं है।

पीसीएमडी उनकी सुन नहीं रहे हैं – यहां तक कि एचओडी/पीएचओडी सहित जीएम तक के फोन कोई एमडी/पीसीएमडी तो क्या, सीएमएस/एसीएमएस तक भी नहीं उठा रहे हैं। कार्यवाहक जीएम्स को इतनी फुर्सत नहीं है कि वह सभी डीआरएम को यथोचित समय दे सकें और अब तो करीब आधे डीआरएम्स का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है, परंतु अब तक उनकी भी पोस्टिंग का कुछ अता-पता नहीं है। ऐसा लगता है कि वर्तमान सीईओ अपने बचे हुए आठ महीने के कार्यकाल में अकेले ही रेल चलाएंगे!

लगभग सभी मंडलों के न सिर्फ आधे से ज्यादा कर्मचारी और क्रू-मेंबर्स, कंट्रोलर्स, स्टेशन मास्टर्स और अन्य फील्ड स्टॉफ संक्रमित हैं, बल्कि कुछ प्रमुख मंडलों में अब तक प्रति मंडल करीब 60-70 रेलकर्मी और अधिकारी अकाल काल कवलित हो चुके हैं। सीआरबी/सीईओ खुद अपनी 25 अप्रैल की मीडिया ब्रीफिंग में स्वीकार कर चुके हैं कि पूरी भारतीय रेल में 93 हजार रेलकर्मी और अधिकारी कोरोना से संक्रमित हैं, जबकि उनका बताया यह आंकड़ा बहुत भरोसेमंद नहीं माना गया है। सीआरबी ने उस दिन संक्रमितों का आंकड़ा तो बताया था, परंतु मौतों का आंकड़ा बताना भूल गए थे।

अब का बरखा, जब कृषि सुखाने !

आपदा प्रबंधन में सबसे काबिल रेलवे फिसड्डी कैसे रह गया!”, This is turning tragic, #Railways is almost in a #state of #collapse“, तथा COVID: Indian Railways has turned explosive due to collapse of Railway Administration शीर्षकों से प्रकाशित खबरों और “कानाफूसी” की कुछ बहुत चुभने वाली ट्विट्स के बाद चार महीनों से अनिर्णयग्रस्त सीईओ/रेलवेज को जब होश आया तब उन्हें कोविड महामारी की दूसरी विभीषिका को लेकर रेल अस्पतालों की तैयारी और व्यवस्था का जायजा लेने के लिए इस वीडियो कान्फ्रेंसिंग का आयोजन करने की सुधि आई है।

यह तो “अब का बरखा, जब कृषि सुखाने” वाली कहावत चरितार्थ हो रही है, क्योंकि अब जब कुछ अधिकारी और सैकड़ों रेलकर्मी असमय मौत का शिकार हो चुके हैं और संक्रमित रेलकर्मियों की संख्या लाखों में पहुंच गई है, तब इस सक्रियता का बहुत महत्व नहीं रह जाता है!

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डॉ रुश्मा टंडन से बुरी तरह त्रस्त रेल अधिकारी

कुख्यात डॉ रुश्मा टंडन, जिनके हाथ में उत्तर रेलवे केंद्रीय अस्पताल (#NRCH) का पूरा एडमिनिस्ट्रेशन दे दिया गया है, अगर इस अति तुनकमिजाज महिला डॉक्टर को यहां से अविलंब नहीं हटाया गया, तो यह कितने कोरोना मरीजों के साथ-साथ अन्य गंभीर मरीजों की अकारण मौत का कारण बनेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता।

सैकड़ों कर्मचारियों और अधिकारियों ने फोन करके बताया कि इस निहायत ही बदतमीज, अक्षम और विवादास्पद महिला डॉक्टर, जो किसी भी कर्मचारी/अधिकारी से कभी भी सीधे मुंह और तमीज से बात ही नहीं करती है, न ही कोई प्रोटोकॉल मानती है, बल्कि एनआरसीएच को अपनी पैतृक संपत्ति समझती है, को अगर यहां से तुरंत नहीं हटाया गया तो कर्मचारियों और अधिकारियों के आक्रोश को देखकर ऐसा लगता है कि वे एक दिन एनआरसीएच में या तो भीषण तोड़फोड़ कर देंगे या फिर सीधे आग लगा देंगे, क्योंकि इस महिला के यहां रहने से उनका अपमान और नुकसान दोनों ही हो रहा है।

कोई देखने-सुनने वाला नहीं, चतुर्थ श्रेणी स्टाफ से कराते हैं मरीजों के काम

Northern Railway Central Hospital (NRCH), Pahadganj, New Delhi

कोविड वार्ड में भर्ती बड़े-बड़े अधिकारियों को देखने वाला कोई नहीं है, जबकि अधिकांश नर्सिंग स्टाफ की ड्यूटी कोविड वार्ड में लगा दी गई है, लेकिन एकाध नर्सिंग स्टाफ को छोड़कर कोई भी नर्सिंग स्टाफ वार्ड में मरीज के पास नहीं जाता है। ऑक्सीजन लगाने/चेक करने, वेंटिलेटर ठीक करने जैसे मरीजों के कई क्रिटिकल काम भी चतुर्थ श्रेणी स्टाफ से करवाए जाते हैं। तब डॉक्टर वहां कितना जाते होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। कोविद वार्ड से कई स्टाफ, जो वहां का हाल बताते हैं, वह रूह कंपाने वाला है। ये डॉक्टर और एनआरसीएच की हकीकत उजागर करते है।

एक बार रेलमंत्री, चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड, जीएम/उ.रे. यहां एनआरसीएच के कोविड वार्ड में भर्ती कम से कम 10 लोग से भी औचक बात कर लें, तो एनआरसीएच प्रशासन और डॉ रुश्मा टंडन की सारी कलई खुल जाएगी।

अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है कि डॉ रुश्मा टंडन के व्यवहार की यह तो सिर्फ एक बानगी है, यदि उनका साक्षात यमराज रूप देखेंगे तो किसी की भी रूह कांप जाएगी। इनके दुःसाहस, संवेदनहीनता और अमानवीयता की पराकाष्ठा यह है कि जिंदगी और मौत से जूझ रहे सीनियर डीसीएम लखनऊ उत्तर रेलवे जगतोष शुक्ला के लिए रेमडेसीवर इंजेक्शन जीएम/उ.रे. के कहने के वावजूद भी इसने 8 घंटे बाद ही दिया।

यह जिद पकड़कर आठ घंटे बैठी रही सिर्फ इसलिए कि शुक्ला पहले अपना पहचान पत्र और मेडिकल कार्ड लेकर आएं तथा ये पेपर चाहिए वो पेपर चाहिए, एनआरसीएच में होता तो देती आदि आदि। अब ऐसे में इस महाबदमिजाज महिला को यह कौन समझाता कि मरणासन्न अवस्था में पड़ा कोई अधिकारी उक्त पेपर्स कैसे लेकर उसके पास आएगा। पीसीसीएम/उ.रे. की अंडरटेकिंग देने के बाद भी इसने काफी विलंब से और वह भी बड़ी जलालत के बाद दिया।

इस दरम्यान यदि शुक्ला को कुछ हो जाता तब उसका जिम्मेदार कौन होता? होना तो यह चाहिए कि जीएम का आदेश न मानने पर डॉ रुश्मा टंडन को तुरंत बर्खास्त कर दिया जाए! परंतु क्या आज इतना साहस अपनी रीढ़ मंत्री के चरणों में गिरवी रख चुके रेल प्रशासन और एफआरओए पदाधिकारियों में बचा है?

अब ऐसे में सामान्य कर्मचारियों की कल्पना करें कि उनका क्या हाल होता होगा डॉ रुश्मा टंडन के भीषण तुनकमिजाज राज में। सीईओ यह भी कल्पना बखूबी आज ही कर लें कि जब यह अपने इमीडिएट बॉस अर्थात कार्यरत जीएम को आज भी कोई भाव नहीं दे रही, तब रिटायरमेंट के बाद उन्हें और खुद सीईओ को भी वह कितना भाव/तवज्जो देगी! यदि उन्हें इसकी भी बानगी आज ही देखनी हो, तो अचानक कोविड वार्ड में भर्ती अपने पूर्ववर्ती धुरंधरों को जाकर मिलें, सब कुछ पता चल जाएगा।

(फिर ऐसे ही डॉक्टर अपने को मसीहा कहकर सम्मानित भी करवाना चाहते हैं। इसी तरह के लोग ये भूल जाते हैं कि बाकी विभागों के लोग काम कर रहे हैं तभी ये अपनी सैलरी उठा रही हैं और और कनॉट प्लेस जैसी जगह में बड़ी शानोशौकत से रह रही है। एक बात और किसी भी दूसरे विभाग के अपने समकक्ष अधिकारी से ठीक दोगुनी तनख्वाह भी एक डॉक्टर के तौर पर इसीलिए लेती है कि ज्यादा समर्पण और कृतज्ञता से बाकी रेल कर्मचारियों के साथ पेश आ सकें।)

इतने के बाद भी अगर डॉ रुश्मा टंडन एनआरसीएच में ही बनी रहती हैं, तो जीएम, सीईओ और रेलमंत्री की नीयत और क्षमता दोनों पर स्वाभाविक रूप से प्रश्न चिन्ह लगता है। एक से एक वरिष्ठ और सक्षम डॉक्टर होने के वावजूद भी एक ऐसी डॉक्टर को ऐसे समय में एनआरसीएच के प्रशासन का प्रभार दे देना, जिसने अपने पूरे जीवन मे हड्डी के एक मरीज का ठीक से इलाज न किया हो, उल्टे जिसके व्यवहार से ही लोगों को बुखार चढ़ जाता हो, रेल के लोगों की जान के साथ खेलना ही तो है। लोग तो खुली जुबान से डॉ रुश्मा टंडन पर सीईओ की कृपा बताते हैं।

वे बताते हैं कि ये मोहतरमा अनंतकाल से दिल्ली में पोस्टेड हैं। अभी हाल ही एनआरसीएच के 5 डॉक्टर्स को एसएजी मिला है, लेकिन पिन-पॉइंटिंग के हिसाब से ये कहीं जाने को तैयार नहीं हैं। एक-दो डॉक्टर अच्छे स्वभाव और काबिलियत के हैं, जिनको योग्यता और प्रोफेशनल आवश्यकता के आधार पर कुछ दिन यहां रोका जा सकता है, लेकिन डॉ रुश्मा टंडन जैसे बदमिजाज, अक्षम, असंवेदनशील और अमानवीय लोग, जो अपने आप में माफिया तंत्र बन चुके हैं, का यहां बने रहना, प्रशासन का अपराधिक कृत्य साबित होगा, जो जल्दी ही कर्मचारियों और उनके परिजनों को कोई बड़ा बवाल करने पर बाध्य कर देगा।

अस्पताल का स्टाफ बताता है कि एनआरसीएच को बर्बाद कर रही सीईओ की इस डिजास्टर टीम को सीईओ से सीधे संरक्षण प्राप्त है। ये लोग इसको खुलेआम बोलते भी हैं। सीईओ को शायद पता नहीं है कि एनआरसीएच में जो भी अनर्थ हो रहा है, कर्मचारी, अधिकारी और उनके परिजन उसका जिम्मेदार सीधे सीईओ को ही मान रहें है।

पीपीई किट नहीं पहनते डॉक्टर

वह कहते हैं कि इनके प्रशासन और नियम कानून सिर्फ रेल के दूसरे कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए ही हैं, लेकिन एनआरसीएच में अराजकता और अनुशासनहीनता का यह आलम है कि कोई भी डॉक्टर बाकी हॉस्पिटल की तरह अपने लिए कोई कोविड प्रोटोकॉल फॉलो नहीं करता है। कोई भी डॉक्टर जनरल ओपीडी से लेकर वार्ड तक में पीपीई किट में नहीं होता है। यही कारण है कि डबल वैक्सीनेशन के वावजूद भी 40% डॉक्टर पॉजिटिव हो जा रहे हैं।

एनआरसीएच में कायदे से जितने डॉक्टर और स्टाफ हैं, अगर किसी अच्छे प्रशासक के हाथ में इसका प्रशासन दे दिया जाए तो यह दिल्ली के मरीज घनत्व के अनुसार चंद सबसे समृद्ध मैनपावर वाले हॉस्पिटल से बराबरी करते हुए नजर आएगा और गुणवत्ता भी निखर जाएगी।

कई अधिकारियों और कर्मचारियों का मानना है कि अगर सीईओ अपने मुख्य काम पर ध्यान देते हुए एनआरसीएच को ठीक करने का जिम्मा पूरी तरह से जीएम और पीसीएमडी/उ.रे. के ऊपर छोड़ दें, तो सारी चीजें हफ्ते भर में ही दुरुस्त हो सकती हैं।

सीईओ को यह भी समझना चाहिए कि भस्मासुर को पालकर 8 माह बाद अपनी भी जिंदगी और आत्मसम्मान सुरक्षित नहीं रख सकेंगे, क्योंकि उनके पहले जिन-जिन सीआरबी ने ऐसे मुगालते पाले थे, वे इन्हीं माफिया डॉक्टरों के चैंबर के सामने लाचार खड़े रहते हैं और कई बार बड़े डॉक्टर का जूनियर डॉक्टर भी खड़े होकर उन्हें सम्मान नहीं देता, कुर्सी ऑफर करना तो बहुत दूर की बात है। हाँ अगर समय रहते व्यवस्था ठीक कर देते हैं, तो भविष्य में कम से कम असम्मानजनक स्थिति और घटिया ट्रीटमेंट से तो नहीं गुजरना पड़ेगा। क्रमशः

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